मुंबई: आदित्य बिड़ला एजुकेशन ट्रस्ट (ABET) के तहत Mpower द्वारा आयोजित ‘Mpowering Minds Summit 2025’ में विश्व स्तर के विशेषज्ञों ने युवाओं के बढ़ते मानसिक स्वास्थ्य संकट पर चर्चा की। इस सम्मेलन में हार्वर्ड मेडिकल स्कूल, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम, मानसिक स्वास्थ्य फर्स्ट एड (MHFA) ऑस्ट्रेलिया, प्रसिद्ध मनोचिकित्सकों, मनोवैज्ञानिकों, शिक्षाविदों और नीति-निर्माताओं ने भाग लिया। भारत में मानसिक स्वास्थ्य को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल के रूप में स्वीकार करते हुए, सम्मेलन ने शिक्षा, नीति और चिकित्सा क्षेत्रों में तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता पर बल दिया।
इस शिखर सम्मेलन का मुख्य आकर्षण “Unveiling the Silent Struggle: Mpower Research Report” की प्रस्तुति रही, जिसे नीरजा बिड़ला और महाराष्ट्र सरकार के मानसिक स्वास्थ्य सेवा निदेशक डॉ. विजय भविष्कर ने जारी किया। रिपोर्ट के अनुसार, 38% छात्र शैक्षणिक चिंता से ग्रस्त हैं, 50% की प्रदर्शन क्षमता गिर रही है, 41% सामाजिक अलगाव महसूस कर रहे हैं और 47% नींद की समस्याओं से जूझ रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि 8.7% छात्रों ने शैक्षणिक दबाव के कारण आत्महत्या का विचार किया, लेकिन मात्र 2% ही पेशेवर सहायता लेते हैं। नीरजा बिड़ला ने मानसिक स्वास्थ्य सुधारों को गति देने के लिए “ग्लोबल मेंटल हेल्थ कंसोर्टियम” की स्थापना की घोषणा की, जो नीति परिवर्तन, प्रारंभिक हस्तक्षेप और बहु-क्षेत्रीय क्षमता निर्माण पर केंद्रित रहेगा।
सम्मेलन में उपस्थित विशेषज्ञों ने युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता पर जोर दिया। डॉ. शेखर शेषाद्रि (पूर्व प्रोफेसर, NIMHANS) ने कहा कि शुरुआती हस्तक्षेप और नीति-निर्माताओं, शिक्षकों एवं अभिभावकों के सहयोग से गंभीर मानसिक स्वास्थ्य संकट को रोका जा सकता है। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के डॉ. ब्लेज़ अगुइरे ने मानसिक स्वास्थ्य कल्याण को एक वैश्विक प्राथमिकता बताते हुए कहा कि इस समस्या का समाधान सामूहिक प्रयासों से ही संभव है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के डॉ. श्याम बिशेन ने मानसिक स्वास्थ्य को मानव अधिकार और सामाजिक-आर्थिक कल्याण का आधार बताया। इस शिखर सम्मेलन ने मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता बढ़ाने और इसके लिए ठोस समाधान विकसित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया।