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18 year old student from Rajasthan advocates safe farming by making solar powered weed killer

राजस्थान के 18 वर्षीय छात्र ने सौर ऊर्जा चालित खरपतवार नाशक बनाकर की सुरक्षित खेती की वकालत

नई दिल्ली. राजस्थान के 18 वर्षीय छात्र रामधन लोढ़ा ने स्केलर स्कूल ऑफ टेक्नोलॉजी द्वारा आयोजित इंडियन सिलिकॉन वैली चैलेंज में अपने नवोन्मेषी जज़्बे का प्रदर्शन करते हुए सौर ऊर्जा चालित खरपतवार नाशक मशीन का प्रदर्शन किया ताकि भारत में सुरक्षित कृषि पद्धतियों को बढ़ावा दिया जा सके। यह सरल उपकरण पारंपरिक कृषि दृष्टिकोण के लिए अधिक टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल विकल्प प्रदान करता है। इस विचार को आगे बढ़ाने में मदद करने के लिए, रामधन को निर्णायक मंडल ने 1 लाख रुपये का विशेष पुरस्कार दिया गया।

रामधन का जन्म एक किसान परिवार में हुआ और बचपन से ही वह अपने पिता तथा अन्य किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों से अच्छी तरह वाकिफ था। पर्यावरण और अपने परिवार के स्वास्थ्य पर रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों के प्रतिकूल प्रभावों को पहचानते हुए, रामधन ने अपने पिता को इन हानिकारक रसायनों के संपर्क से बचाने के लिए एक अधिक कुशल और वहनीय समाधान खोजने को अपना लक्ष्य बना लिया। इस मिशन के परिणामस्वरूप सौर ऊर्जा से संचालित खरपतवार-नाशक मशीन का निर्माण हुआ, जिसे खरपतवार उन्मूलन के लिए अधिक प्राकृतिक समाधान प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया था।

सौर ऊर्जा से चलने वाले इस खरपतवार-नाशक मशीन को ज़रूरत के मुताबिक लंबा-छोटा कर पोर्टेबल बनाने के लिए भी डिज़ाइन किया गया है, जिससे किसानों को जहरीले कीटनाशक धुंध के संपर्क में आने का जोखिम कम हो जाता है। इन सुविधाओं से न केवल सुरक्षा बढ़ती है बल्कि हल्की मशीनरी के उपयोग के कारण खरपतवार नियंत्रण अधिक सुविधाजनक बन जाता है। अपने आविष्कार के पीछे की प्रेरणा के बारे में, रामधन लोढ़ा ने कहा, “कृषि समुदाय में पले-बढ़े होने के कारण, मैंने किसानों के संघर्ष को देखा है, विशेष रूप से स्वास्थ्य जोखिमों से जुड़े संघर्ष। मैं ऐसी मशीन बनाना चाहता था, जो इन चुनौतियों से निपटने के साथ-साथ पारंपरिक तरीकों के लिए पर्यावरण-अनुकूल विकल्प हो। स्केलर स्कूल ऑफ टेक्नोलॉजी के इंडियन सिलिकॉन वैली चैलेंज ने मुझे अपने आविष्कार को प्रदर्शित करने के लिए शानदार मंच प्रदान किया, और मैं इस अवसर के लिए आभारी हूं। मेरा सपना है कि मैं किसी दिन पूरे देश के किसानों को अपनी मशीन का उपयोग करते देख सकूं।”

वित्तीय बाधाओं के बावजूद रामधन ने पूरे समर्पण के साथ अपनी परियोजना पर काम किया। अपने परिवार और शिक्षकों के सहयोग से, उसने मशीन के डिजाइन और कार्यक्षमता को बेहतर बनाने में चार से पांच साल लगाए। उनकी कड़ी मेहनत अंततः सफल हुई जब उनके मॉडल को प्रतिष्ठित राष्ट्रीय बाल वैज्ञानिक पुरस्कार मिला, जो उनके आविष्कार की क्षमता का स्पष्ट संकेत था।

एसवीपी और स्केलर स्कूल ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रमुख, भाविक राठौड़ ने रामधन की उपलब्धि पर अपनी टिप्पणी में कहा, “रामधन का नवोन्मेषी समाधान रचनात्मकता और समस्या-समाधान की भावना का एक अद्भुत उदाहरण है जिसे हम स्केलर में बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं। वास्तविक समाधान के प्रति रामधन प्रतिबद्धता- विश्व की चुनौतियों में प्रौद्योगिकी का उपयोग सराहनीय है और हमें इंडियन सिलिकॉन वैली चैलेंज के माध्यम से उसकी प्रतिभा दिखाने के लिए एक मंच प्रदान करने पर गर्व है।”

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