नई दिल्ली. देश के दो सबसे बड़े राजनीतिक दल कांग्रेस और भाजपा अगले सप्ताह से आम चुनावों के लिए अपना प्रचार अभियान शुरू कर सकते हैं। इनके जरिये राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार अपनी योजनाओं नीतियों और आगे के कार्यक्रमों का प्रचार कर रही है। आचार संहिता के लागू होने के बाद भाजपा और कांग्रेस का प्रचार अभियान जोर पकड़ेगा। सूत्रों के मुताबिक 2014 के चुनावों की तरह इस बार भी प्रचार अभियान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा का सबसे बड़ा चेहरा होंगे जबकि कांग्रेस की नैया पार लगाने की जिम्मेदारी राहुल गांधी पर होगी। प्रचार के पहले दौर में भाजपा ने कम से कम 500-600 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। 2014 में पार्टी ने फरवरी-मार्च से अप्रैल-मई तक अपने चुनाव प्रचार में करीब 700 करोड़ रुपये खर्च किए थे। इस बार चुनाव प्रचार की अवधि कम होगी लेकिन भाजपा इसके लिए कोई कसर नहीं छोडऩा चाहती है। पार्टी के प्रचार का जिम्मा ओगिल्वी समूह के पास है। वर्ष 2014 में भाजपा ने अपने प्रचार के लिए विज्ञापन एजेंसी सोहो स्क्वायर (अब 82.5 कम्युनिकेशंस) और मैकेन वल्र्डग्रुप की विज्ञापन कंपनी टीएजी की सेवाएं ली थी। सोहो स्क्वायर ऑगिल्वी समूह और का हिस्सा है। सोहो स्क्वायर ने ही ‘अबकी बार मोदी सरकार’ जैसे नारे गढ़े थे जबकि मैकेन वल्र्डग्रुप ने भाजपा का चुनावी गीत ‘सौगंध मिट्टी की’ जारी किया था। दूसरी ओर कांग्रेस आम चुनावों के लिए अभी तक प्रचार एजेंसियों को अंतिम रूप नहीं दे पाई है। इसमें एफसीबी इंडिया और लिओ बर्नेट होड़ में हैं। कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी उनकी समीक्षा कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक मुंबई के कांग्रेसी नेता मिलिंद देवड़ा प्रचार से जुड़ी टीम में शामिल हैं। दूसरी ओर भाजपा में प्रचार की रूपरेखा की जिम्मेदारी अध्यक्ष अमित शाह और पीयूष गोयल संभाल रहे हैं। ब्रांडबिल्डिंग.कॉम के संस्थापक अंबी परमेश्वरन कहते हैं भाजपा के प्रचार में पिछली बार बदलाव पर जोर था जबकि इस बार प्रचार के केंद्र में सरकार की निरंतरता रहेगी। इसलिए सत्तारूढ़ दल का जोर अपनी उपलब्धियों के प्रचार पर होगा जबकि विपक्षी दल लोगों को पिछले पांच साल में हुई परेशानी और चुनौतियों को मुद्दा बनाएगी। कुछ विशेषज्ञों ने कहा कि पिछले एक महीने में भाजपा ने सरकार के विज्ञापनों में उसकी विभिन्न योजनाओं का प्रचार किया है। इनमें उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, डिजिटल इंडिया आदि शामिल हैं। मोदी ने सभी सरकारी विज्ञापनों को एक थीम के तहत लाने के लिए कुछ दिन पहले ‘नामुमकिन अब मुमकिन है’ टैगलाइन जारी की थी। सूत्रों के मुताबिक पिछले एक महीने के दौरान केंद्र और भाजपा शासित राज्यों के विज्ञापनों पर कम से कम 600-700 करोड़ रुपये खर्च हुए होंगे क्योंकि यह चरण मतदाताओं का ध्यान खींचने के लिए बहुत अहम है। विशेषज्ञों के मुताबिक दूसरे चरण में भाजपा को जोर इस मुहिम को मजबूत करने की होगी।
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