जयपुर। 2014 में जब भाजपा ने सत्ता संभाली थी, उस समय अप्रभावी नीतियों, विलंबित परियोजनाओं और बैंकिंग सेक्टर पर मंडराते बैड लोन के माहौल में सरकार से बहुत ज्यादा अपेक्षाएं थीं। उस समय पूरे विश्व में भारतीय अर्थव्यवस्था को ‘कमजोर’ माना जा रहा था। लेकिन आज यह देखकर बहुत खुशी हो रही है कि आर्थिक मोर्चे पर हमारा प्रदर्शन आशावादी अपेक्षाओं से भी बेहतर रहा है। पिछले 9 साल आर्थिक वृद्धि दर को बनाए रखने के लिए आसान नहीं थे। विश्व विकट चुनौतियों और विपरीत परिस्थितियों, जैसे कोविड, रूस यूक्रेन युद्ध, चीन-अमेरिका टकराव, बढ़ती महंगाई , बढ़ती ब्याज दर और कमजोर मुद्रा एवं विकसित देशों में मंदी के दौर से गुजर रहा था। भारत ने इन सभी चुनौतियों को पार भी किया, और एक ‘शक्तिशाली’देश भी बनकर उभरा।
‘रिफॉर्म, परफॉर्म, एंड ट्रांसफॉर्म
समाचार की सुर्खियों में राजनैतिक, सामाजिक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे छाए रहे और हमारी अर्थव्यवस्था इन सबके साथ किस प्रकार रेंग रही है, इस बारे में अस्पष्टता रही। पिछले 9 सालों में भारत द्वारा ‘रिफॉर्म, परफॉर्म, एंड ट्रांसफॉर्म (सुधार, कार्य, और परिवर्तन लाने) के माध्यम से भौतिक, वित्तीय, टेक्नोलॉजिकल, डिजिटल और प्रशासनिक ढांचा मजबूत करने पर केंद्रित रहने का परिणाम मिलना शुरू हो गया है।
उपभोक्ताओं की संख्या 15 गुना बढ़कर 85 करोड़ को पार कर गई
भौतिक और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में पिछले 9 सालों में राष्ट्रीय राजमार्ग की लंबाई लगभग दोगुनी होकर 1,45,000 किलोमीटर तक पहुँच चुकी है; ब्राडबैंड इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 15 गुना बढ़कर 85 करोड़ को पार कर गई है , और 2022 में डिजिटल विनिमय 149.5 लाख करोड़ रु. के थे। बिजली निर्माण की क्षमता दोगुनी से ज्यादा हो गई है। पोर्ट और एयरपोर्ट के इन्फ्रास्ट्रक्चर में भी काफी सुधार हुआ है।
टैक्स और जीडीपी के अनुपात में भी सुधार
निर्मल जैन फाउंडर आईआईएफएल समूह (Nirmal Jain Founder IIFL Group) के अनुसार, “देश को विकास करने में मदद करते हुए बैंकों ने सबसे अच्छा कैपिटल एडिक्वेसी और लाभ दर्ज किया , जिसका कारण बैड लोन का तेजी से समाधान और पीएसयू बैंकों का कान्सोलिडेशन कर कुछ बड़े बैंकों का निर्माण था। परिवर्तनशील पूंजी बाजारों से घरेलू बचत को उत्पादक कार्यों में लगाने में मदद मिली। कॉरपोरेट्स ने अपना कर्ज कम कर अपनी बैलेंस शीट्स को मजबूत बनाया। चालू खाता घाटे में कमी आई और मुद्रा में बाहरी झटकों के प्रति काफी सहनशीलता देखने को मिली। अप्रैल 2023 में जीएसटी कलेक्शन बढ़कर 1.87 लाख करोड़ रु. तक पहुँच गया। टैक्स और जीडीपी के अनुपात में भी सुधार होता रहा। पिछले दशक में एफडीआई फ्लो 600 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो उससे पिछले दशक की इसी अवधि के मुकाबले दोगुना था। सरकार के खर्च में केपेक्स का हिस्सा काफी ज्यादा रहा और महंगाई की दर 4 से 6 प्रतिशत के बीच सीमित रही”।
147 से बढ़कर 63 वें स्थान पर आ गया
ईज़ ऑफ़ डूईंग बिज़नेस रैंकिंग में भारत प्रभावशाली प्रदर्शन करते हुए 147 से बढ़कर 63 वें स्थान पर आ गया। लंबे समय से लंबित मूलभूत सुधारों, जैसे दिवालियापन अधिनियम (आईबीसी), रियल ईस्टेट नियमन (रेरा), पीएलआई (प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव्स) और वन नेशन टैक्स (जीएसटी) ने इस प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।आर्थिक और भूराजनैतिक क्षेत्र में कई बाहरी विकास भारत के लिए अच्छा समय लेकर आए हैं। उदाहरण के लिए, विश्व में पहली बार वैश्विक एमएनसी और निवेशक चीन का विकल्प तलाशने के लिए गंभीर हैं, और यूरोप में ऊर्जा पर अत्यधिक निर्भरता वाले उद्योग रूस से गैस सप्लाई बंद होने की वजह से दूसरी जगह स्थानांतरित और स्थापित होने पर विचार कर रहे हैं। अनुकूल जनसांख्यिकीय आँकड़े, बेहतर वित्तीय समावेशन , मैनुफैक्चरिंग में संभावित वृद्धि, और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर में तेज वृद्धि भी देश की प्रगति को बल देने वाले दूसरे महत्वपूर्ण तत्व हैं। यदि सरकार साहसिक सुधार न लेकर आए, तो इस तरह के अच्छे अवसर अक्सर हाथ से निकल जाते हैं।
विकास के इन अवसरों का पूरा लाभ उठाने के लिए अगले 5 से 10 सालों में भारत में सामाजिक और शहरी इन्फ्रास्ट्रक्चर में काफी ज्यादा निवेश, टैक्स कानूनों को सरल बनाने, कृषि उत्पादकता में सुधार लाने के लिए कृषि कानूनों का जनाधार विकसित करने, राज्य बिजली बोर्ड के नुकसान की समस्या को हल करने जैसे अनेक प्रयासों की जरूरत होगी। पिछले 9 सालों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। मौजूदा सरकार द्वारा किए गए नीतिगत सुधारों के प्रभाव से भारतीय अर्थव्यवस्था की क्षमता और बढ़ेगी, और यह आने वाले दशक में 7 से 8 प्रतिशत प्रतिवर्ष की वृद्धि दर हासिल करते हुए 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ेगी।