Jaipur. डॉ. रत्ना कुमरिया, सीनियर डायरेक्टर – एग्रीकल्चरल बायोटेक्नॉलॉजी, अलायंस फॉर एग्री इनोवेशन, फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया का एक विशेष रुचि समूह ने कहा, जलवायु परिवर्तन ने वैश्विक संकटों को बढ़ाया है। महामारी और भू-राजनैतिक अस्थिरता के कारण खाद्य आपूर्ति में आई बाधा ने लोगों को विज्ञान एवं एग्री-बायोटेक्नॉलॉजी अपनाने की ओर प्रेरित किया है। महामारी को नियंत्रित करने के लिए बायोटेक्नॉलॉजी द्वारा पेश किए गए तीव्र समाधानों से खाद्य उत्पादन और वितरण में अनेक समस्याओं के लिए टेक्नॉलॉजिकल समाधानों में उपभोक्ता के विश्वास को बल मिला है। बायोटेक्नॉलॉजी की इसी तरह की एक पेशकश जीएम फसलें हैं, जो पूरी दुनिया में बिना किसी नकारात्मक प्रभाव के 25 सालों से ज्यादा समय से उगाई भी जा रही हैं, और पैदावार बढ़ाने, जीवाश्म ईंधन एवं कीटनाशकों के उपयोग में कमी लाने में योगदान भी दे चुकी हैं। दुनिया के कई देशों में अपनी आबादी को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए पिछले 5 सालों में जीएम खेती को अपनाया गया है। इन देशों में चीन, केन्या, मलावी, घाना और नाईजीरिया हैं।
जीएम कपास और जीएम पपीते की वाणिज्यिक खेती की अनुमति
चीन में अभी तक जीएम कपास और जीएम पपीते की वाणिज्यिक खेती की अनुमति मिल चुकी है। इस बात के मजबूत संकेत मिल रहे हैं कि कुछ और जीएम फसलों, खासकर जीएम मक्का और जीएम सोयाबीन को भी वाणिज्यिक खेती की अनुमति जल्द दे दी जाएगी। कुछ अफ्रीकी क्षेत्र कुपोषण, खाद्यान्न की कमी, अपर्याप्त खाद्य उत्पादन, और फसल के नुकसान का गंभीर संकट झेल रहे हैं। अफ्रीका में मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को नुकसान की चिंता के कारण आधुनिक बायोटेक्नॉलॉजी का विरोध किया गया था। हालाँकि, जीएम फसलें खेती की समस्याओं को हल करने और महाद्वीप में सस्टेनेबिलिटी स्थापित करने में अपनी उपयोगिता साबित कर रही हैं। दक्षिण अफ्रीका, बुर्किना फासो, मिस्र, केन्या, युगांडा, और नाईजीरिया में कृषि उत्पादकता में सुधार लाने के लिए बायोटेक्नॉलॉजी के उपयोग को राजनैतिक और जन सहयोग मिल चुका है। ऐसे ही एक देश मलावी का उदाहरण लेते हैं। यहाँ पर 2019 में पहली जीएम फसल, बीटी कॉटन को अनुमति मिली थी। उसके बाद किसानों को कीटों के संक्रमण से फसल को होने वाले नुकसान को कम करने में मदद मिली है। मलावी में कपास की पैदावार 400 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 800 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई। अब इस देश में मक्का जैसी अन्य फसलों और सूखा के नियंत्रण जैसे लक्षणों का विकास करने के लिए टेक्नॉलॉजी के उपयोग पर विचार किया जा रहा है। कई कमजोर देशों में वैज्ञानिक ऐसे बायोटेक्नॉलॉजिकल अविष्कार करने की कोशिश कर रहे हैं, जिनसे फसल की पैदावार बढ़े, कीटों और बीमारियों से ज्यादा प्रतिरक्षा मिले, और विभिन्न फसलों में ज्यादा पोषण मिले।
कृषि क्षेत्र में परिवर्तन संभव
भारत सरकार कई दशकों से आधुनिक विज्ञान और कृषि में इसके उपयोग के लिए वित्तीय मदद दे रही है, ताकि कृषि क्षेत्र में परिवर्तन संभव बनाया जा सके। सार्वजनिक और निजी क्षेत्र द्वारा बेहतर लक्षणों और पोषण वाली जीएम फसलों का विकास किया जा रहा है। जीएम सरसों की कमर्शियल स्वीकृति ने बेहतर लक्षणों वाली अन्य जीएम फसलों की स्वीकृति मिलने और खेती के द्वार खोल दिए हैं।
उर्वरक और कीटनाशकों के उपयोग में भारी कमी आती
लोगों के बीच जलवायु परिवर्तन का सामना करने, तेजी से बढ़ती आबादी को भोजन देने और कुपोषण का अंत करने के लिए जीएम टेक्नॉलॉजी की जरूरत के बारे में जागरुकता बढ़ रही है। पर्यावरण को जीएम फसलों का एक बड़ा फायदा यह है कि इनमें उर्वरक और कीटनाशकों के उपयोग में भारी कमी आती है। अध्ययनों में सामने आया है कि कीट-प्रतिरोधी और खरपतवारनाशक की सहनशीलता वाली जीएम फसलों की खेती के दो दशकों में कीटनाशकों के छिड़काव में 8 प्रतिशत से ज्यादा कमी आई है। जीएम फसलें पानी एवं अन्य महत्वपूर्ण संसाधनों का कम उपयोग करती हैं। इसके अलावा रसायनों एवं अन्य सामग्री के उपयोग में कमी लाते हुए जीएम फसलों से बेहतर गुणवत्ता की हवा, बेहतर गुणवत्ता का जल, मिट्टी का बेहतर स्वास्थ्य और बेहतर स्थानीय जैव विविधता सुनिश्चित होती है। जीएम फसल की खेती में कीटनाशकों के उपयोग में कमी और जीवाश्म ईंधन के कम उपयोग के कारण पारंपरिक फसलों की तुलना में जीएम फसल के खेत कम कार्बन उत्सर्जन करते हैं। जीएम फसलों को अपनाने से ग्रीन हाउस गैस यानि कार्बन डाई ऑक्साईड के उत्सर्जन में काफी कमी आ जाती है क्योंकि जीएम फसलों की खेती में ईंधन का उपयोग कम होता है। 2020 में इनके उपयोग से अतिरिक्त कार्बन मिट्टी पृथकीकरण, सड़क से 15.6 मिलियन कारों को हटाए जाने के बराबर पाया गया। जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से यह महत्वपूर्ण है। जीएम आहार के साथ लोगों के अनुभव और इनके फायदों के प्रति उनकी जागरुकता ने आधुनिक विज्ञान के प्रयोगों को स्वीकार करने में वृद्धि की है।
10 बिलियन से ज्यादा लोगों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित
पर्यावरण के संकट को रोकने और 10 बिलियन से ज्यादा लोगों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हमें खेती की जमीन बढ़ाए बिना खाद्य उत्पादकता बढ़ानी होगी ताकि वनों और जैव विविधता की रक्षा हो सके। कार्बन के पृथकीकरण में सुधार लाते हुए जलवायु परिवर्तन के कारण खेत में जैविक और अजैविक तनावों को भी कम करना होगा। जीएम फसलों की औसत पैदावार 22 प्रतिशत ज्यादा होती है, जबकि उनके द्वारा कीटनाशकों के उपयोग में 37 प्रतिशत की कमी आती है। ये आँकड़े ग्लोबल मेटा-एनालिसिस द्वारा सामने आए हैं। इसके अलावा, अनुवांशिक संशोधन से हमें बीमारी और कीटों की ज्यादा प्रतिरोधात्मकता के साथ न केवल ऊँची पैदावार प्राप्त करने में मदद मिल सकती है, बल्कि हमें बेहतर स्वाद, ज्यादा पोषण, लंबी शेल्फ लाईफ, और जलवायु परिवर्तन के प्रति ज्यादा सहनशीलता भी प्राप्त हो सकती है।
जीएम टेक्नॉलॉजी नाजुक परिवेश और ज्यादा आबादी वाले देशों में खाद्य और पोषण की सुरक्षा बढ़ाने में योगदान दे सकती है। यह पूरे विश्व में आर्थिक रूप से गरीब और पोषण से वंचित आबादी और छोटे व गरीब किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है। जीएम टेक्नॉलॉजी का एक अतिरिक्त फायदा यह है कि यह कृषि में पर्यावरण के फुटप्रिंट को भी कम करने में मदद कर रही है।