नई दिल्ली. जमात-ए-इस्लामी जम्मू-कश्मीर पर बैन के बाद से घाटी में छापेमारी तेज है। सुरक्षा एजेंसियों ने अबतक 400 स्कूल, 350 मस्जिद और एक हजार से ज्यादा मदरसे सील कर दिए हैं। छापेमारी के दौरान जमात-ए-इस्लामी से जुड़े करीब 350 कट्टरपंथियों को भी गिरफ्तार किया गया हैं। अब जमात-ए-इस्लामी पर गाज के बाद आतंकी संगठनों की तबाह भी संभव है।
कैसे काम करते हैं आतंकी नेटवर्क
आतंकी नेटवर्क की पहली जरूरत फंडिंग यानी पैसे की होती हैं। दूसरी जरूरत वो युवा जो मरने के लिए तैयार रहते हैं और तीसरी जरूरत ओवर ग्राउंड वर्कर जो आतंकी वारदात को सपोर्ट करते हैं। जमात-ए-इस्लामी जम्मू-कश्मीर भी इन्ही तीनों जरूरतों को पूरा करता है।
फंडिंग युवा और ओवर ग्राउंड वर्कर्स के काम
पुलवामा आतंकी हमले का मास्टरमाइंड और जैश5ए-मोहम्मद का सरगना मसूद अजहर और उस जैसे आतंकी जमात-ए-इस्लामी के जरिए पैसे मुहैया कराते हैं। जो स्लीपर सेल तक पहुंचते हैँ। इतना ही नहीं जमात-ए-इस्लामी के मदरसों और स्कूलों से युवाओं को आतंकी बनाया जाता है। ओवर ग्राउंड वर्कर जो आतंकियों के शील्ड बनते हैं जैसे पत्थरबाज या उन्हें भगाने वाले लोग जमात-ए-इस्लामी इसके लिए भी लोगों को तैयार करता है। सरकार ने आतंक की इन्हीं तीन जड़ों पर हमला किया है।
1975 में पहली बार लगा जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध
अलगाववाद की मुहिम में 1989 में जमात-ए-इस्लामी शामिल हुआ और हिजबुल मुजाहिद्दीन बनायाण् गृहमंत्री रहते हुए मुफ्ती मोहम्मद सईद ने 1990 में जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाया था।1975 में लगी इमरजेंसी में जमात-ए-इस्लामी पर पहली बार प्रतिबंध लगाया गया और तो और हिजबुल चीफ आतंकी सैयद सलाउद्दीन को इसी संगठन ने 1987 में चुनावी मैदान में उतारा था। जमात-ए-इस्लामी आए दिन हिंदुस्तान विरोधी रैलियां भी करता हैण् जमात-ए-इस्लामी आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन का दाहिना हाथ हैँ।