Jaipur. डिजिटल के भविष्य पर हाल में एक परिचर्चा में विचार-विमर्श हुआ। इसमें निजी डेटा के संरक्षण (protection of personal data) के लिए कुछ रोचक तथ्य उजागर हुए। पाठकों को मालूम ही होगा कि भारत में व्यक्तिगत डेटा के संरक्षण के लिए कानून नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय के नौ सदस्यीय पीठ ने 2017 में पुत्तस्वामी बनाम भारत संघ के मामले में एक राय से फैसला दिया था कि व्यक्तिगत डेटा की निजता मौलिक अधिकार है। इस क्रम में न्यायालय ने निजी डेटा की सुरक्षा के लिए कानून बनाने की सिफारिश की थी।
सरकार कई बार प्रस्तावित विधेयक के प्रारूप में फेरबदल कर चुकी
लोगों की राय जानने और उचित प्रारूप के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश बीएन श्रीकृष्ण (Retired Justice BN Srikrishna) की अध्यक्षता में गठित समिति हुई थी। समिति ने जुलाई 2018 में विधेयक का प्रारूप पेश किया था। इसके बाद सरकार कई बार प्रस्तावित विधेयक के प्रारूप में फेरबदल कर चुकी है। हर बार कानून अपने को निगरानी व डेटा हासिल करने की शक्तियां देने का प्रस्ताव करता है और इसे व्यापक व अस्पष्ट रूप से परिभाषित शक्तियों के कारण आपत्तियों का सामना करना पड़ा है। लिहाजा भारत कानूनी किंतु-परंतु में फंसा हुआ है। यह भारत के 75 करोड़ स्मार्टफोन उपभोक्ताओं के लिए निश्चित रूप से बड़ी खामी है। दुनिया में भारत के प्रति व्यक्ति डेटा की खपत और कुल मात्रा सबसे अधिक है।