मुंबई। विड महामारी की बढ़ती गंभीरता और आर्थिक प्रभाव को देखते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक दूसरी बार कर्ज पुनर्गठन की अनुमति चाह रहे हैं। पिछले साल भी कोविड की वजह से कर्ज पुनर्गठन की मंजूरी दी गई थी ताकि किस्त का भुगतान नहीं करने वाले खातों डिफॉल्ट की श्रेणी में न आ सकें।
पुनर्गठन का लाभ लिया, स्थिति अच्छी नहीं
कोविड महामारी (Covid pandemic) की दूसरी लहर की वजह से सूक्ष्म, लघु उपक्रमों और परिवारों पर ज्यादा मार पड़ी है। कई लोगों ने पिछली बार पुनर्गठन का लाभ (benefit of loan restructuring) लिया था लेकिन अभी उनकी स्थिति भी अच्छी नहीं दिख रही है। एक वरिष्ठ बैंकर ने कहा कि कुछ बैंकों के मुख्य कार्याधिकारियों ने भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास के साथ हुई बैठक में इसे लेकर चिंता जताई है और एक बार फिर से कर्ज पुनर्गठन की मांग की है।
से खातों के लिए कम प्रावधान रखने की मांग
इसके साथ ही अगर आरबीआई (RBI) ऐसे पुनर्गठन की अनुमति देता है तो उससे संबंधित प्रावधान को लेकर भी बैठक में चर्चा की गई। ऋणदाताओं ने ऐसे खातों के लिए कम प्रावधान (करीब 5 फीसदी) रखने की मांग की। पिछले साल दी गई कर्ज पुनर्गठन की अनुमति में 10 फीसदी प्रावधान यानी फंसे कर्ज की 10 फीसदी राशि अलग रखने के लिए कहा गया था। बैंकरों ने कहा कि बैंकिंग तंत्र पर दबाव को देखते हुए बैंकों ने नियामकीय नियमों से कहीं ज्यादा प्रावधान रख रहे हैं। ऐसे कई सुझाव औपचारिक रूप से इंडियन बैंक्स एसोसिएशन द्वारा आरबीआई (RBI) को भेजे गए हैं।
आरबीआई की घोषित उपायों को बैंक करें जल्द लागू
बैंकों के मुख्य कार्याधिकारियों के साथ बैठक में आरबीआई के गवर्नर ने इस बात को स्वीकारा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक महामारी के दौर में आम लोगों और कारोबारों को उधार एवं बैंकिंग सुविधाएं मुहैया कराने में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं। दास ने कहा कि बैंकों को आरबीआई द्वारा हाल ही में घोषित उपायों को शीघ्रता से लागू करना चाहिए। उन्हें अपने बहीखातों को दुरुस्त करने पर लगातार ध्यान देना चाहिए।