जयपुर। मशहूर शायर राहत इंदौरी (rahat Indori) का मंगलवार को हृदय गति रुक जाने से निधन हो गया। सांस लेने में तकलीफ के बाद उन्हें इंदौर के अरविंदो अस्पताल में दाखिल कराया गया था, वह 70 वर्ष के थे। उर्दू अदब के चाहने वालों के बीच ‘राहत साहब’ के नाम से पहचाने जाने वाले राहत इंदौरी ने मंगलवार सुबह ही सोशल मीडिया पर लिखा था कि सेहत खराब होने पर उन्हें अस्पताल में दाखिल कराया गया जहां उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई। इंदौरी (rahat Indori) दिल की बीमारी के अलावा किडनी की तकलीफ और मधुमेह से भी पीडि़त थे।
विरल लोकप्रियता हासिल थी
राहत इंदौरी (rahat Indori) की शायरी का फलक इश्क से इंकलाब तक फैला हुआ था और वे कदाचित आधुनिक भारत के चंद सबसे लोकप्रिय शायरों में शुमार थे। उनकी शायरी में मुल्क से मुहब्बत, सियासत से शिकायत और खुद्दार नौजवानों से उम्मीद साफ नजर आती है। यही कारण है कि उम्रदराज पीढ़ी से लेकर युवाओं तक में उन्हें विरल लोकप्रियता हासिल थी।
सभी का खून है शामिल यहां कि मिट्टी में…
‘सभी का खून है शामिल यहां कि मिट्टी में // किसी के बाप का हिंदोस्तान थोड़ी है’ (kisi ke baap ki hindostan thodi hai) और ‘जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे/ किराएदार हैं जाती मकान थोड़ी है’, जैसे राजनीतिक रूप से मानीखेज शेर हों या ‘मैं जब मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना / लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना’ जैसे मुल्क की मोहब्बत में डूबे शेर, राहत साहब के पास संघर्षपूर्ण जीवन से निकले अनुभवों का एक पूरा खजाना था जिसने उन्हें कई मकबूल शेर लिखने में मदद की।
फैक्टरी में बोर्ड भी रंगते थे
राहत इंदौरी (rahat Indori) की शायरी को कहीं से भी देखें वह हमेशा सदाकत यानी सचाई और इंसानियत के पक्ष में खड़ी मिलेगी। सन 1950 में मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में जन्मे राहत इंदौरी का बचपन का नाम कामिल और अकादमिक नाम राहत उल्लाह था लेकिन उर्दू अदब की दुनिया में वह राहत इंदौरी के नाम से मशहूर हुए। राहत इंदौरी (rahat Indori) का बचपन बेहद मुफलिसी में कटा। उनके पिता ने ऑटो चलाने से लेकर मिल मजदूरी तक का काम किया। राहत इंदौरी (rahat Indori) स्वयं इंदौर की एक फैक्टरी में बोर्ड रंगने का काम किया करते थे।