नई दिल्ली। आयकर विभाग के लिए अब विदेश में अवैध रूप से रखी गई रकम (black earning abroad) वसूलने का रास्ता साफ हो जाएगा। एक अपीलीय न्यायाधिकरण के आदेश के बाद एचएसबीसी स्विस (HSBC Swiss), पनामा (Panama) और पैराडाइज पेपर्स (Paradise Papers) मामलों में खुलासा हुई रकम तक भी कर विभाग की पहुंच आसान हो जाएगी। गुरुवार को आयकर अपील न्यायाधिकरण (आईटीएटी) ने अपने एक बेहद अहम आदेश में कर अधिकारियों को प्रवासी भारतीय रेणु टीकमदास तराणी से जुड़ी 196 करोड़ रुपये रकम पर कर का शिकंजा कसने का निर्देश दिया। जिनेवा में एचएसबीसी (HSBC) के एक खाते से जुड़े परिवार न्यास की आरोपी लाभार्थी तराणी ने कर दाखिल करते वक्त 1,70,800 रुपये की सालाना आय घोषित की थी।
628 लोगों फेहरिस्त में शामिल
न्यायाधिकरण ने कहा कि स्विटजरलैंड बैंक (Switzerland Bank) में आयकर दाता की जमा रकम उसकी घोषित सालाना आय से कहीं अधिक है। न्यायाधिकरण ने कहा बैंक में जितनी रकम जमा है उसे अर्जित करने में 11,500 वर्षों से अधिक का समय लगता। तराणी का नाम उन 628 लोगों फेहरिस्त में शामिल है, जिनके नाम एचएसबीसी स्विस खुलासे (HSBC Swiss Revelations) में सामने आए हैं।
जमा काला धन खंगालने और वसूलने में मदद
एक कर अधिकारी ने कहा कि न्यायाधिकरण के आदेश से कर विभाग को विदेश में जमा काला धन खंगालने और वसूलने में मदद मिलेगी। यह आदेश उस व्यक्ति पर भी लागू होगा जो संबंधित व्यक्ति ‘कन्सेंट वेवर’ (खाते से जुड़ी जानकारी साझा करने पर सहमति) पर हस्ताक्षर करने से मना कर देता है। कन्सेंट वेवर से कर विभाग को विदेश में खाते से जुड़ी संबंधित जानकारियां खंगलाने में मदद मिलती है। कर अधिकारी अब तक विदेश में जमा कालेधन से जुड़े कई मामलों में कामयाबी हासिल करने में असफल रहे हैं। इनमें वे बड़े मामले भी हैं, जो सुर्खियों में रहे हैं। इसकी वजह यह है कि जिन देशों में ऐसे मामले सामने आए हैं, वहां के संबंधित विभाग सूचना सुरक्षा और बैंकिंग गोपनीयता कानूनों का हवाला देकर सहयोग करने से बचते रहे हैं।
एचएसबीसी को ऐसे मामलों में दोषी पाया
स्विटजरलैंड में बैंकों और कर बचत के लिहाज से माकूल देशों से जुड़े ज्यादातर मामले में खाताधारक की सहमति के बाद ही खाते से जुड़ीं जानकारियां साझा की जाती हैं। न्यायाधिकरण ने तराणी की याचिका खारिज कर दी और कहा कि दुनिया की विभिन्न सरकारों ने एचएसबीसी को ऐसे मामलों में दोषी पाया है। स्विटजरलैंड सरकार ऐसे खातों की जानकारियां साझा नहीं करती है इस वजह से कर अधिकारी चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते हैं।
तराणी का मामला 2014 में सामने आया
तराणी का मामला 2014 में सामने आया था जब आईटी विभाग को एचएसबीसी स्विटरजरलैंड बैंक में बड़ी रकम जमा होने की सूचना मिली थी। उपलब्ध सूचना के आधार पर पुनर्समीक्षा कार्यवाही शुरू हुई थी। कार्यवाही के दौरान विभाग को पता चला कि सवालों के घेरे में आया बैंक खाता केमैन आइलैंड में तराणी ट्रस्ट की जीडब्ल्यूयू का था। यह कंपनी न्यास के निपटानकर्ता के तौर पर काम करती है। आईटीएटी ने कहा, ‘मामले से जुड़े तथ्यों और कानूनी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए कोई भी समझदार आदमी तराणी की दलील स्वीकार नहीं कर पाएगा।’ न्यायाधिकरण ने कहा कि केमैन आइलैंड परोपकार के लिए नहीं जाना जाता रहा है और सभी जानते हैं वहां लोग अपना काला धन छुपाते हैं।